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Monday, January 31, 2022

Kohler's Insight Learning Theory(कोहलर का अन्तर्दृष्टि या सूझ द्वारा सीखने का सिद्धान्त

 -प्रतिपादन-1912(Gestalt Psychologist)वर्दीमर, कोहलर और कोफ़्का हैं।

-गेस्टाल्ट जर्मन भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है आकर(Form),संरचना(Configuration)अथवा प्रतिरूप(Pattern)-पूर्णाकारवाद (सम्पूर्ण से अंश की ओर)

-उपनाम:-गेस्टाल्ट सिद्धान्त,पूर्णाकार सिद्धान्त,समग्र सिद्धान्त,पूर्णाक्रति सिद्धान्त आदि

-सूझ=अनुभव+अभ्यास

-प्रकृति:-संज्ञानात्मक

-इस सिद्धांत का प्रयोग सर्वप्रथम प्रत्यक्षीकरण में किया गया था

-प्रयोगकर्ता:-कोहलर(कोफ़्का ने सहयोग किया)

-प्रयोग किया:-चिंपैंजी/वनमानुष(सुल्तान)

-गेस्टाल्टवादियों के अनुसार सीखना प्रयास व त्रुटि के द्वारा न होकर सूझ के द्वारा होता है।

-सूझ का अभिप्राय अचानक उत्पन्न होने वाले एक ऐसे विचार से है जो किसी समस्या का समाधान कर दे।

-सूझ द्वारा सीखने के लिए बुद्धि की आवश्यकता बुद्धि की आवश्यकता होती है और इस प्रकार के अधिगम में मस्तिष्क का सर्वाधिक प्रयोग होता है।

-सूझ द्वारा सीखने के अंतर्गत प्राणी परस्थितियों का भलीभांति अवलोकन करता है उसके बाद अपनी प्रतिक्रिया देता है।

-शैक्षिक महत्व:-

1.समस्या का पूर्ण रूप से प्रस्तुतिकरण

2.तत्पर होना।

3.विषयवस्तु का उचित संगठन व क्षमता के अनुसार विषयवस्तु।

4.रचनात्मक कार्यों के लिए उपयोगी।

5-कला संगीत साहित्य के लिये उपयोगी-क्रो एंड क्रो

6.लक्ष्य प्राप्ति में सहायक-ड्रेवर

7-कठिन विषय के लिए उपयोगी

8.समस्या-समाधान आधारित शिक्षा

9-स्वयं खोज कर सीखना

-अन्तर्दृष्टि को प्रभावित करने वाले कारक:-

1.बुद्धि(Intelligence)-बुद्धिमान बालक विषय सामग्री को जल्दी सीखता है।

2.प्रत्यक्षीकरण(Perception)- किसी भी समस्या के समाधान से पूर्व उसको पूरी तरह से जानना आवश्यक है।

3.अनुभव(Experience)-अनुभवी व्यक्ति समस्या का समाधान आसानी से निकाल लेते है।

4.समस्या की संरचना(Structure of Problem)-सरल समस्या का प्रत्यक्षीकरण आसानी से हो जाता है जिससे उसका आसानी से समाधान निकल आता है।

5.प्रयास एवं भूल(Trial and error)-सूझ की स्थापना होने पर व्यक्ति को समस्त परिस्थिति का ज्ञान हो जाता है।

Sunday, January 30, 2022

Guthric-Horton Experiment(गुथरी-हॉर्टन का प्रयोग)

 -गुथरी तथा हॉर्टन ने अपने प्रयोगों में एक ऐसे पहेली बक्से(Puggle Box)का उपयोग किया जिसके बीच में एक लिवरनुमा छड़ी या pole लगा था।

-इस पोल पर बिल्ली के किसी भी अंग का स्पर्श होने पर बक्से के दरवाजा स्वतः खुल जाता हैं और बिल्ली बाहर आकर अपना भोजन कर लेती है।

-इस प्रयोग में लगभग 800 फ़ोटो लिए और पाया कि हर बार बिल्ली ने अपनी गलती को सुधारा और अंत मे बिना किसी गलती के दरवाजा खोलकर बाहर आयी और भोजन प्राप्त किया ।

-बिल्लियों के रूढ़िबद्ध व्यवहार के अवलोकन के परिणामस्वरूप गुथरी ने सीखने की प्रक्रिया के सामान्य सिद्धान्त प्रतिपादित किये-

1.समीपता का नियम(Law of Continuity)-गुथरी के अनुसार उद्दीपक तथा अनुक्रिया के पास-पास होने के कारण प्राणी जल्दी सीखता है।

2.एकल प्रयास अधिगम का नियम(Law of Single Trail Learning)-उद्दीपक तथा अनुक्रिया के बीच सम्बन्ध प्रथम प्रयास  में अधिकतम में अधिकतम शक्ति प्राप्त कर लेता है।

3-नवीनता का नियम(Law of Recency)-पूर्व परिस्थिति के पुनः आने पर अंतिम अनुक्रिया(Last Response)को दोहराता है।

4-कार्यों का अधिगम(Learning of Acts)-किसी कौशल में निपुणता अर्जित करने के लिए अभ्यास की आवश्यकता इसलिए होती है जिससे प्राणी क्रमबद्ध ढंग से सभी बंधनों को सीख सकें।

5-गति उत्पन्न उद्दीपक क्रिया(Movement Produced Stimuli Function)-जब किसी बाह्य उद्दीपक से अनुक्रिया प्रारम्भ होती है तो शरीर अगली अनुक्रिया के लिए उद्दीपक को प्रस्तुत करने का उत्तरदायित्व ले लेता है।

6-पुनर्बलन की भूमिका(Role of Reinforcement)-पुनर्बलन देने से उत्तेजन अवस्था(Stimulating Condition)  में यांत्रिक परिवर्तन आ जाता है एवं प्राणी पुनर्बलन की उपस्थिति से उद्दीपक व अनुक्रिया के बीच अनुबंधन शीघ्रता से बनाता है।

7-दण्ड की भूमिका(Role of Punishment)-दण्ड इस प्रकार से दिया जाना चाहिये कि प्राणी अपने व्यहवार को बदलने की सोचे।

8-विस्मरण  तथा विलोपन(Forgetting and Extinction)-किसी गलत व्यवहार का विस्मरण होने या विलोपन के लिए नई बात का सीखना आवश्यक है।

9-अभिप्रेरक तथा प्रणोद(Motives and Drives)-अभिप्रेरक तथा प्रणोद प्राणी को लक्ष्य प्राप्ति तक क्रियाशील रखते है।

10-अधिगम अंतरण(Transfer of Learning)- दो परिस्थितियों में समानता होने पर एक परिस्थिति में सीखा ज्ञान दूसरी परिस्थिति में प्रयोग में आ जाता है।

11-गलत आदत परिष्कार(Bad Habit Breaking)-असंगत उद्दीपक विधि में अवांछित अनुक्रिया उतपन्न करने वाले उद्दीपक के साथ अन्य ऐसे उद्दीपकों को प्रस्तुत किया जाता है जो वांछित अनुक्रिया देते है।

Hull,s Reinforcement Theory(हल का प्रबलन सिद्धांत)

 प्रतिपादक-क्लार्क एल० हल(Clark L. Hull)-U. S .A.सन 1915 में अपनी पुस्तक Prninciples Behaviour  में यह सिद्धांत दिया।

-यह सिद्धान्त आवश्यकता पर बल देता है।

-यह सिद्धांत बालक की आधारभूत आवश्यकताओं व उनके आधार पर सीखने की क्षमता के विकास पर बल देता है।

-आवश्यकता(Need) उन चालकों(Drivers)को जन्म देती है,जो व्यक्ति को क्रिया  के सीखने के लिए प्रेरित करते है।

सिद्धान्त के अन्य नाम-गणतीय सिद्धान्त(Mathematical Theory),परिकल्पित निगमन सिद्धान्त(Hypothetical Deductive Theory),आवश्यकता अवकलन सिद्धान्त(Need Reduction Theory),जैवकीय अनुकूलन सिद्धान्त(Biological Adaptation Theory),उद्देश्य प्रवणता सिद्धान्त(Goal Gradient Theory)

-हल के अनुसार जीव वास्तव में एक स्व-संचालित समस्या समाधान प्रणाली(Automatic Problem-Solving System) है।

-हल=(थार्नडाइक+पावलव)दोनों के सिद्धान्त

Need को पूरा करने के लिए Response ,सीखने का सर्वश्रेष्ट सिद्धान्त हल का है।

शैक्षिक महत्व:-

1-बालकों को प्रेरित किया जाता है।

2-यह सिद्धान्त पाठ्यक्रम बनाते समय विद्यार्थियों की आवश्यकता पर बल देता है।

3-पुरुस्कार व दण्ड की व्यवस्था और प्रेरणा।

4-उद्देश्य व लक्ष्य स्पस्ट होते है।


Thursday, January 27, 2022

Skinner Theory of Operant Conditioning

 प्रतिपादक-प्रोफेसर बी.एफ. स्किनर(Skinner)-1938

-अध्ययन किया-चूहा और कबूतर पर

-क्रिया प्रसूत अनुकूलन का आधार पुनर्बलन को माना जाता है।

-यह सिद्धान्त उद्दीपन-अनुक्रिया(S-R)  अनुबंधन सिद्धान्त की श्रृंखला में एक नवीन सिद्धान्त है जो वाट्सन(Watson) के व्यवहारवाद के सिद्धान्त तथा थार्नडाइक के अधिगम सम्वन्धी प्रभाव के नियम(Law of effect)पर आधारित है।

-इस क्रिया में( R) प्रकार का अनुबंधन अधिक महत्वपूर्ण है।

-स्किनर ने व्यवहार को दो भागों में विभक्त किया है-1.अनुक्रियात्मक(Respondent)2.क्रियाप्रसूत(Operant)

-स्किनर ने अनुक्रिया को दो भागों में विभक्त किया-(1)प्रकट या प्रकाश में आने वाली अनुक्रिया।(2)-उत्सर्जन अनुक्रिया जो अनुक्रियाएँ ज्ञात उद्दीपन द्वारा प्रकाश में लायी जाती हैं, वे प्रकाशित या प्रकट अनुक्रियाएँ होती है तथा जो अनुक्रियाएँ किसी ज्ञात उद्दीपन से संबंधित नहीं होती उन्हें क्रियाप्रसूत(Operant)अनुक्रियाएँ कहते है।

स्किनर ने चूहा और कबूतर पर प्रयोग करने के बाद निष्कर्ष निकाला कि अनुक्रिया के बाद जो पुनर्बलन दिया जाता है,उससे अनुक्रिया के बल व शक्ति में बृद्धि होती है।

-स्किनर ने एक बक्से में एक लीवर(Lever) व एक थाली थी।

इसमे चूहे पर प्रयोग किया गया यदि चूहा लीवर को दबा देता था तो खट्ट की आवाज के साथ थाली में खाने का टुकड़ा आ जाता था जो पुनर्बलन का कार्य करता था।बार -बार क्रिया करने से चूहा लीवर की खट्ट की आवाज व खाने के टुकड़े से संबंध स्थापित कर लेता है।

-चूहा भूख नामक अन्तरनोद(Drive)से परिचालित रहता था।

-स्किनर ने दूसरा प्रयोग कबूतरों पर किया।बक्से में एक भूखे कबूतर को रखा गया।यदि वो एक निर्दिष्ट स्थान पर चोंच मरता तो उसे खाने का दाना मिल जाता था। कबूतर अपनी गर्दन प्रकाश होने पर ही उठाये।धीरे-धीरे वह प्रकाश होने पर सही स्थान पर चौंच मारकर दाना प्राप्त करना सीख लेता है।

-इसे पुनर्बलन का सिद्धान्त (Theory of Reinforcement)भी कहते है।

-पुनर्बलन दो प्रकार का होता है-(1)-धनात्मक पुनर्बलन(Positive Reinforcement)-जो किसी उद्दीपक की उपस्थिति से मिलता है।

-ऋणात्मक (Negative Reinforcement)-जो उद्दीपक की अनुपस्थिति से मिलता है।

2-प्राथमिक पुनर्बलन(Primary Reinforcement)-जो किसी उद्दीपक से सीधा प्राप्त होता है।

-गौण पुनर्बलन(Secondary Reinforcement)-जो प्रथमिक पुनर्बलन प्रदान करने वाले उद्दीपक के साथ लगातार उपस्थित होने के कारण प्राप्त होता है।

-क्रिया प्रसूत सिद्धान्त के चार पहलू:-

1.पुनर्बलन अनुसूची-स्किनर(Schedules of Reinforcement)ये निम्नलिखित है-

1.निश्चित अनुपात अनुसूची(fixed Ratio Schedule)-जैसे प्रत्येक 5 अनुक्रिया के बाद

2-निश्चित अंतराल अनुसूची(Fixed Interval Schedule) जैसे-प्रत्येक 1 घंटे बाद

3-शत-प्रतिशत अनुसूची(Cent-Percent Schedule) जैसे-प्रत्येक सही अनुक्रिया के बाद

4-आंशिक अनुसूची(Partial Schedule) जैसे-किसी भी सही या गलत अनुक्रिया पर कभी भी पुनर्बलन।

2-विभेदीकरण(Discrimination)वयवहार को नियंत्रित करनर के लिए।

3-उन्मूलन(Exitinction)-क्रियाप्रसूत व्यहवार के करते ही पुनर्बलन देने से प्रक्रिया तेज हो जातीऔर बिलुप्त होने पर  प्रक्रिया कमजोर हो जाती है।

4-व्यहवार को वांछित रूप देना(Shaping the Behavior)-इसी सिद्धान्त के आधार जानवरो को प्रशिक्षित किया जाता है।



Wednesday, January 26, 2022

TET,NET,PGT&Other Exam(Pavlov's Theory of Classical Conditioning)पावलव का शास्त्रीय अनुबंधन का सिद्धान्त:-

  • शास्त्रीय अनुबंधन सिद्धान्त का प्रतिपादन रूसी वैज्ञानिक शिक्षाशास्त्री ईवान पी.पॉवलव ने 1904 में किया था।
  • इस सिद्धान्त को अनुकूलित-अनुक्रिया,संबंध प्रतिक्रिया, प्रतिस्थापन अधिगम व अनुबन्ध अधिगम के नाम से जाना जाता है।
  • बर्नाडे के अनुसार,"अनुकूलित-अनुक्रिया उत्तेजना(Stimulus)को बार-बार दोहराने के फलस्वरूप व्यहवार का स्वचालन है।"
  • शास्त्रीय अनुबंधन प्रक्रिया का प्रारम्भ किसी विशेष उद्दीपक द्वारा कोई निश्चित अनुक्रिया उत्पन्न करके किया जाता है।
  • शास्त्रीय अनुबंधन में वांछित व्यहवार अथवा अनुक्रिया उत्पन्न करने में उद्दीपक(Stimulus)की केंद्रीय भूमिका रहती हैं।इस कारण इसे उद्दीपक जनित अनुबंधन(S type conditioning )कहते हैं।
  • शास्त्रीय अनुबंधन अनुक्रिया व्यहवार सम्बन्धी अधिगम में सहायक सिद्ध होता है।
  • लगभग सभी आदतों के निर्माण शास्त्रीय अनुबंधन सिद्धान्त के के आधार पर किया जा सकता है।
  • प्रयोग-कुत्ते पर
  • U.C.S.-Unconditional Stimulus(स्वभाविक उद्दीपक भोजन)
  • C.S.-Conditional Stimulus(अस्वाभाविक उद्दीपक-घंटी की आवाज)
  • U.C.R.-Unconditional Response (स्वाभाविक अनुक्रिया-लार)
  • C.R.Conditional Response (अस्वाभाविक अनुकूलित अनुक्रिया/अनुबंधन
  • 1-अनुकूलन से पूर्व
  • स्वभाविक उद्दीपक(भोजन)-U.C.S.(अनुबंधित उद्दीपक)Then result is स्वभाविक अनुक्रिया(लार)U.C.R(अनुबंधित अनुक्रिया)
  • 2-अनुकूलन के दौरान अस्वभाविक उद्दीपक(घंटी )C.S.+ स्वाभाविक उद्दीपक(भोजन) U.C.S. Then result is स्वाभाविक अनुक्रिया(लार)U.C.R.(अनुबंधित अनुक्रिया)
  • 3-अनुकूलन के बाद(अस्वाभाविक उद्दीपक(घंटी)C.S. then result is स्वभाविक अनुक्रिया(लार)C.R.(अनुबंधित अनुक्रिया-लार(C.R.) अनुबंधित अनुक्रिया व अनुकूलित अनुक्रिया
  • नोट:-अनुकूलित अनुक्रिया का मतलब है-अस्वाभाविक उद्दीपक के प्रति स्वभाविक अनुक्रिया होना।


Thursday, January 20, 2022

Theories of Learning(सीखने के सिद्धांत)


            अधिगम के सिद्धांत:-
1- व्यवहारवादी सिद्धान्त(Behaviorist Theories)
2-संज्ञानात्मक सिद्धान्त(Cognitive Theories)
व्यवहारवादी सिद्धान्त/उद्दीपक-अनुक्रिया सिद्धान्त(Stimulus-Response Theory):ये दो प्रकार के होते है
1-उद्दीपक-अनुक्रिया पुनर्बलन सिद्धान्त(S-R Theories with reinforcement)-थार्नडाइक,पावलव,स्किनर,हल तथा मिलर आदि के सिद्धान्त
2-उद्दीपक-अनुक्रिया अपुनर्बलन सिद्धान्त((S-R Theories without reinforcement)-वाटसन,गुथरी ऐस्ट्स आदि के सिद्धांत।

संज्ञनात्मक सिद्धान्त(Cognitive Theories):
1-क्लासिकल संज्ञानात्मक सिद्धान्त(Classical Cognitive Theory):वर्दीमर,कोहलर,कोफ़्का लेविन,पियाजे, आदि के सिद्धांत
2-आधुनिक संज्ञानात्मक सिद्धान्त(Modern Cognitive Theory):ब्रूनर,आसुबेल ,Bandura,वॉल्स आदि के सिद्धान्त
थार्नडाइक का सम्बन्धवाद सिद्धान्त(Thorndike's Theory of Connectionism):इस सिद्धान्त के अनुसार जब कोई उद्दीपक प्राणी के समक्ष उपथिति होता है तब  वह उसके प्रति प्रतिक्रिया करता है।प्रतिक्रिया के सही अथवा संतोषजनक होने पर उसका संबंध उस विशेष उद्दीपक से हो जाता है जिसके कारण प्रतिक्रिया की गई है।
-पशुमनोविज्ञान का जनक थार्नडाइक है।
-शिक्षा मनोविज्ञान के जनक थार्नडाइक है।
-तुलनात्मक मनोविज्ञान के जनक थार्नडाइक है।
-थार्नडाइक ने सीखने के कुल 8 सिद्धान्त बताये जिनमे 3 मुख्य नियम और 5 गौण नियम है।
-3 प्रमुख नियम:
1-अभ्यास का नियम(Law of Exercise):करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान
  • उपयोग का नियम:-यदि कोई कार्य पहले किया हुआ है और जब उसको पुनः किया जाता है तो वह हमारे मष्तिष्क में पुनः आ जाता है।
  • अनुपयोग का नियम यदि किये गए कार्य को पुनः नही करते है तो हमारा मस्तिष्क उसे भुला देता है।
2-तत्परता का नियम(law of Readiness):तत्परता के नियम को तैयारी ,प्रेरणा के नियम के नाम से भी जाना जाता है।यह ज्ञात से अज्ञात के नियम पर कार्य करता है।जैसे घोड़े को पानी के लिए तालाब तक ले जाया जा सकता है लेकिन पानी पीने के लिए बाध्य नही किया जा सकता क्योंकि घोड़ा पानी पीने के लिए तत्पर नही है।
3-प्रभाव का नियम(Law of Effect):यदि किसी कार्य को करने पर हमें संतोष प्राप्त होता है तो हम उस कार्य को पुनः करेगें और यदि कार्य को करने से असंतोष होता है तो उस कार्य को दोबारा नही करेगें।
गौण नियम:-
1-बहुप्रतिक्रिया का नियम(Law of multiple-response):-वांछित सफलता प्राप्ति तक प्राणी के द्वारा किये गए विभिन्न प्रयास।
2-मनोवृति का नियम(law of Mental Set):-इस नियम से मनुष्य की सीखने की प्रक्रिया व्यक्ति के समग्र द्रष्टिकोण के अनुसार चलती है।
3-आंशिक क्रिया का नियम(Law of Partial Activity):-किसी कार्य को छोटे-छोटे भागों में बाँटकर किया जाता है तो उस उस कार्य मे सफलता अधिक मिलती है।
4-आत्मीकरण का नियम(Law of Analogy):-कोई नया कार्य करने पर किसी पुराने किये गए कार्य का ज्ञान नये ज्ञान में मिला देना।
5-सहचर्यात्मक रूपांतरण का नियम(Law of Associative Shifting):-क्रिया का रूप तो वही रखा जाता है लेकिन परस्थितियों में परिवर्तन कर दिया जाता है।

Thursday, January 13, 2022

Learning(अधिगम)

Meaning and definition of learning(अधिगम का अर्थ एवं परिभाषा:-
Meaning (अर्थ):-बालक के व्यवहार में वांछित परिवर्तन ही अधिगम है।यह परिवर्तन पूर्व अनुभवों पर आधारित होता है।जो स्थायी या अस्थायी हो सकता है।
वुडवर्थ के अनुसार-"नवीन ज्ञान तथा नवीन प्रतिक्रियाओं का अर्जन करने की प्रक्रिया अधिगम प्रक्रिया है"।
The process of acquiring new knowledge and new responses is the process of learning._Woodworth
स्किनर के अनुसार-"अधिगम व्यवहार में उत्तरोत्तर अनुकूलन की एक प्रक्रिया है"
Learning is a process of progressive behaviour adaptation._Skinner
गिल्फोर्ड के अनुसार-"व्यवहार के कारण व्यवहार में आया कोई भी परिवर्तन अधिगम है।"
Learning is any change in behaviour resulting from behaviour._Guilford
क्रो एवं क्रो के अनुसार-"आदतों,ज्ञान तथा अभिवृत्तियों का अर्जन ही अधिगम है।"
Learning is the acquisition of habits, knowledge and attitudes._Crow and Crow
अधिगम की विशेषतायें(Characteristics of Learning)-
-अधिगम विकास है।(Learning is growth)
-अधिगम समायोजन है।(Learning is adjustment)
-अधिगम अनुभवों का संगठन है(Learning is organization of experiences)
-अधिगम सोद्देशय है(Learning is purposeful)
-अधिगम विवेकपूर्ण व सृजनशील है।(Learning is intelligent and creative)
-अधिगम क्रियाशील है।(Learning is active)
-अधिगम व्यक्तिगत व सामाजिक दोनों है।(Learning is both individual and social)
-अधिगम वातावरण के परिणामस्वरूप होता है।(Learning is a product of environment)
-अधिगम व्यक्ति के आचरण को प्रभावित करता है।Learning affects the conduct of the learner)
अधिगम के प्रकार(Types of Learning)
1.संवेदन गति अधिगम(Sensory Motor Learning g)-बालक का अनुकरण द्वारा सीखना
2.गामक अधिगम(Motor Learning)-अंगों पर नियंत्रण करना सीखता
3.बौद्धिक अधिगम(Intellectual Learning).

अधिगम को प्रभावित करने वाले कारक(Factors Influencing Learning)
1.वातावरण(Learning Atmosphere)
2.शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य(Physical and Mental Health)
3. विषय-सामग्री और उसका स्वरूप(Nature of Subject Matter)
4.परिपक्वता(Masturbation)
5.अभिप्रेरणा(Motivation)
6.सीखने की विधि(Method of Learning)
7.समय एवं थकान(Time of Learning and Fatigue)
8.अध्यापक की भूमिका(Role of Teacher)
9.सीखने की इच्छा(Willingness to Learning)

Tuesday, January 11, 2022

Infancy(शैशवावस्था)

 *जन्म से 6वर्ष

*थार्नडाइक कहते है कि 3-6वर्ष की आयु का बालक प्रायःआधे स्वप्न की अवस्था मे रहता है।


*सिग्मंड फ्रायड कहते है कि इसी काल में बालक के भावी जीवन की नींव रखी जाती है।

*वेलेन्टाइन इस अवस्था को सीखने का आदर्शकाल मानते है।

शैशवावस्था की विशेषताएं(Characteristics of Infancy)

1-तीव्र शारीरिक विकास(Rapid Growth in Physical Devlopment)

2-तीव्र मानसिक विकास(Rapid Growth in Mantal Development)

3-कल्पनाशीलता(Imagination)

4-सीखने की प्रक्रिया में तीव्रता(Rapid Growth in Learning Process)-गैसल के अनुसार,-शिशु अपने पहले 6 वर्षों में उसके बाद के 12 वर्षों से दुगना सीख लेता है।

5-जिज्ञासा(Curiosity)

6-दोहराने की प्रवृत्ति(Repetition)

7-पर-निर्भरता(Dependency on Others)

8-नैतिक भावना का अभाव(Lack of Moral Sense)

9-आत्म-प्रेम की भावना(Feeling of Self Love)

10-काम प्रवृत्ति(Sexual Tendency)

11-संवेगों का प्रदर्शन(Emotions Performance)

12-आत्म गौरव(Self-Assertion)

13-साथ खेलने की प्रवृत्ति(Tendency to Play with Each Other)

शैशवावस्था में शिक्षा(Education During Infancy):

-उचित वातावरण(Proper Environment)

-पालन-पोषण(Nurture)

-स्नेहपूर्ण व्यवहार(Affectionate Behaviour)

-जिज्ञासा की संतुष्टि(Satisfaction of Curiosity)

-सामाजिक भावना का विकास(Development of Sociability)

-मानसिक क्रियाओं के अवसर(Opportunities For Mental Activities)

-वार्तालाप के अवसर(Opportunities For conversation)

-आत्मप्रदर्शन के अवसर(Opportunities for Self-Demonstration)

-अच्छी आदतों का निर्माण(Formation of Good Habits)

-वैयक्तिक विभेदों पर ध्यान(Attention on Individual Differences)

-करके सीखने की महत्ता(Importance of Learning by Doing)


शैशवावस्था में शारीरिक विकास(Physical Development During Infancy):

-लम्बाई(Height)-जन्म के समय बच्चे की लंबाई प्रायः 43 से53 से.मी. होती है।

-भार(Weight)-भारत में नवजात शिशु का औसत भार 6.5पौंड रहता है।

-शरीर के अंगों में अनुपात(Body Proportions)-जन्म के समय सिर पूरे शरीर का लगभग 22% होता है।

-हड्डियां(Bones)-जन्म के समय शिशुओं की हड्डी कोमल होती है तथा इनकी संख्या 270 के लगभग होती है।

*शैशवावस्था में मानसिक विकास(Mental Development of Infancy)-जॉन लॉक के अनुसार,"जन्म के समय शिशु का मस्तिष्क एक कोरे कागज के समान होता है और पूरे जीवन के अनुभव उसके पटल पर लिखे जाते है"

*शैशवावस्था में सामाजिक विकास(Social Development in Infancy Period)-शैशवावस्था में बालक अपने समाजिक विकास को आँखों के द्वारा एवं मुस्कराकर व्यक्त करता है।बालक आत्मकेंद्रित होता है।

*संवेगात्मक विकास(Emotional Development)-मनोवैज्ञानिक कहते है संवेग जन्मजात नही होते हैं बल्कि उनका विकास धीरे-धीरे होता है।लगभग दो वर्ष की आयु तक शिशु में लगभग सभी मुख्य संवेगों का विकास हो जाता है।

*शैशवास्था में नैतिक विकास(Moral Development in Infancy Period)-सामन्यतः दो वर्ष तक के बालकों में उचित -अनुचित के ज्ञान का विभाजन नहीं हो पाता है।



Monday, January 10, 2022

Stages of Development (विकास की अवस्थाएं)

1.गर्भावस्था(Prenatal):
2.शैशवावस्था(Infancy)
3.बाल्यावस्था(Childhood)
4.किशोरावस्था(Adolescence)
5..प्रौढ़ावस्था(Adulthood)

         विकास का पक्ष
(Aspects of Development)
1.शारीरिक विकास(Physical Development)
2.मानसिक विकास(Mental Development)
3.सामाजिक विकास(Social Development)
4.संवेगात्मक विकास(Emotional Development)
5.नैतिक विकास(Moral Development)

          वृद्धि तथा विकास के सिद्धांत
(Theories of Growth and Development)
1.फ्रायड का मनोलैंगिक विकास का सिद्धांत(Freud's Theory of Psycho-Sexual Development)
2.प्याजे का संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत(Piaget's Theory of Cognitive Development)
3.इरिक्सन का मानो-सामाजिक विकास सिद्धांत(Erickson's Theory of Psycho-Social Development)
4.चोमस्की का भाषा विकास सिद्धांत(Chomsky's Theory of Language Development)
5.कोहलबर्ग का नैतिक विकास सिद्धांत(Kohlberg's Theory of Moral Development)


General Principles of Growth and Development (वृद्धि तथा विकास के सामान्य सिद्धान्त)

1.निरन्तरता का सिद्धांत(Principle of Continuity)
2.व्यक्तिगतता का सिद्धांत(Principle of Individuality)
3.परिमार्जितता का सिद्धांत(Principle of Modifiability)
4.निश्चित तथा पूर्वकथनीय प्रतिरूप का सिद्धान्त(Principle of Definite and Predictable Pattern)
5.समान-प्रतिमान का सिद्धांत(Principle of Uniform Pattern)
6.समन्यव का सिद्धान्त(Principle of Integration)
7.वंशानुक्रम तथा वातावरण की अन्तःक्रिया का सिद्धांत(Principle of Interaction between
 Heredity and Environment)
8.चक्राकार प्रगति का सिद्धांत(Principle of Spiral Advancement)

Supreme Court of India

1.भारत का संघीय न्यायालय की स्थापना 1अक्टूबर,1937 को भारत सरकार अधिनियम,1935 के तहत की गयी थी।इसके प्रथम मुख्य न्यायाधीश सर मौरिस ग्वेयर थे।...