*जन्म से 6वर्ष
*थार्नडाइक कहते है कि 3-6वर्ष की आयु का बालक प्रायःआधे स्वप्न की अवस्था मे रहता है।
*सिग्मंड फ्रायड कहते है कि इसी काल में बालक के भावी जीवन की नींव रखी जाती है।
*वेलेन्टाइन इस अवस्था को सीखने का आदर्शकाल मानते है।
शैशवावस्था की विशेषताएं(Characteristics of Infancy)
1-तीव्र शारीरिक विकास(Rapid Growth in Physical Devlopment)
2-तीव्र मानसिक विकास(Rapid Growth in Mantal Development)
3-कल्पनाशीलता(Imagination)
4-सीखने की प्रक्रिया में तीव्रता(Rapid Growth in Learning Process)-गैसल के अनुसार,-शिशु अपने पहले 6 वर्षों में उसके बाद के 12 वर्षों से दुगना सीख लेता है।
5-जिज्ञासा(Curiosity)
6-दोहराने की प्रवृत्ति(Repetition)
7-पर-निर्भरता(Dependency on Others)
8-नैतिक भावना का अभाव(Lack of Moral Sense)
9-आत्म-प्रेम की भावना(Feeling of Self Love)
10-काम प्रवृत्ति(Sexual Tendency)
11-संवेगों का प्रदर्शन(Emotions Performance)
12-आत्म गौरव(Self-Assertion)
13-साथ खेलने की प्रवृत्ति(Tendency to Play with Each Other)
शैशवावस्था में शिक्षा(Education During Infancy):
-उचित वातावरण(Proper Environment)
-पालन-पोषण(Nurture)
-स्नेहपूर्ण व्यवहार(Affectionate Behaviour)
-जिज्ञासा की संतुष्टि(Satisfaction of Curiosity)
-सामाजिक भावना का विकास(Development of Sociability)
-मानसिक क्रियाओं के अवसर(Opportunities For Mental Activities)
-वार्तालाप के अवसर(Opportunities For conversation)
-आत्मप्रदर्शन के अवसर(Opportunities for Self-Demonstration)
-अच्छी आदतों का निर्माण(Formation of Good Habits)
-वैयक्तिक विभेदों पर ध्यान(Attention on Individual Differences)
-करके सीखने की महत्ता(Importance of Learning by Doing)
शैशवावस्था में शारीरिक विकास(Physical Development During Infancy):
-लम्बाई(Height)-जन्म के समय बच्चे की लंबाई प्रायः 43 से53 से.मी. होती है।
-भार(Weight)-भारत में नवजात शिशु का औसत भार 6.5पौंड रहता है।
-शरीर के अंगों में अनुपात(Body Proportions)-जन्म के समय सिर पूरे शरीर का लगभग 22% होता है।
-हड्डियां(Bones)-जन्म के समय शिशुओं की हड्डी कोमल होती है तथा इनकी संख्या 270 के लगभग होती है।
*शैशवावस्था में मानसिक विकास(Mental Development of Infancy)-जॉन लॉक के अनुसार,"जन्म के समय शिशु का मस्तिष्क एक कोरे कागज के समान होता है और पूरे जीवन के अनुभव उसके पटल पर लिखे जाते है"
*शैशवावस्था में सामाजिक विकास(Social Development in Infancy Period)-शैशवावस्था में बालक अपने समाजिक विकास को आँखों के द्वारा एवं मुस्कराकर व्यक्त करता है।बालक आत्मकेंद्रित होता है।
*संवेगात्मक विकास(Emotional Development)-मनोवैज्ञानिक कहते है संवेग जन्मजात नही होते हैं बल्कि उनका विकास धीरे-धीरे होता है।लगभग दो वर्ष की आयु तक शिशु में लगभग सभी मुख्य संवेगों का विकास हो जाता है।
*शैशवास्था में नैतिक विकास(Moral Development in Infancy Period)-सामन्यतः दो वर्ष तक के बालकों में उचित -अनुचित के ज्ञान का विभाजन नहीं हो पाता है।
3 comments:
Very good job
bahut Achcha content hai🙏🏻🙏🏻
Great 👍🙏
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