मनोविश्लेषणात्मक सिद्धांत(Psycho-Analytical Theory)
प्रतिपादक:- सिगमंड फ्रायड(जन्म-6मई 1856,मृत्यु-23सितम्बर 1939)
निवासी-ऑस्ट्रिया(वियना में)
- सिगमंड फ्रायड ने मन की तीन दशाएँ बतायीं है
1.चेतन मन(Conscious Mind) 1/10:- मस्तिष्क की जागृत अवस्था
2.अचेतन मन(Unconscious Mind) 9/10:- कटु अनुभूतियों दुखद बातें तथा दमित इच्छाओं का भंडार
3.अर्द्धचेतन मन(Sub conscious Mind) 00:- चेतन और अचेतन के बीच की अवस्था ।याद की हुई बातों को भूल जाना, अटक जाना, हकलाना आदि बातें अर्द्धचेतन को प्रदर्शित करते हैं।
सिगमंड फ्राइड ने व्यक्तित्व संरचना की दृष्टि से तीन अवस्थाएं बताएं है-
1. Id(इदम्) सुखवादी सिद्धांत पर आधारित, पशु प्रवृत्ति का, अचेतन मन का राजा ,अर्थात दमित इच्छाओं को पूर्ण करने वाला, व्यक्ति की जन्मजात मनःशक्तियों का भंडार होता है। इसकी प्रकृति मूल प्रवृत्तियों पर निर्भर करती है। इदम् यौन प्रवृत्ति तथा आक्रामकता पर आधारित होता है। यह पूर्णता अचेतन होता है। यह व्यक्तित्व का जैविक पहलू है।
2.Ego( अहम) वास्तविक सिद्धांत पर आधारित चेतन मन का स्वामी। अहम यथार्थता के सिद्धांत पर कार्य करता है। अहम को व्यक्तित्व का मनोवैज्ञानिक पहलू माना जाता है।
3.Super Ego( परम अहं) आदर्शवादी सिद्धांत पर आधारित
परम अहं नैतिकता के सिद्धांत पर कार्य करता है इसको नैतिकता का कमांडर कहा जाता है ।यह पूर्णता चेतन होता है । इसे हम अंतरात्मा कहते हैं। परम अहम व्यक्तित्व का सामाजिक पहलू माना जाता है।
मूल प्रवृत्तियां(Instincts):-
1. जीवन मूल प्रवृत्ति या यौन प्रेम(Life Instincts or Eros):- जीवन मूल प्रवृत्ति व्यक्ति को जीवित रहने के लिए प्रेरणा स्रोत का काम करती है। जीवन मूलप्रवृत्ति से संबंधित सभी मूल प्रवृत्तियों में निहित संपूर्ण मानसिक शक्ति को फ़्रायड ने काम शक्ति(Libido) का नाम दिया है ।जिनमें काम-वासना भूख तथा प्यास मुख्य हैं ।मनोविश्लेषण में जीवन मूल प्रवृत्तियों के संपूर्ण समूह को संगठित रूप में फ़्रायड ने यौन प्रेम (Eros)का नाम दिया है।
2.मृत्यु मूल प्रवृत्ति( Death Instinct or Thanatos):-
मृत्यु के उपरांत व्यक्ति की सभी प्रकार की जैविक आवश्यकताओं का अंत हो जाता है। मृत्यु मूल प्रवृत्ति में मृत्यु प्राप्त करने की अचेतन भावना नीहित रहती है फ़्रायड के अनुसार प्राणी के जीवन का उद्देश्य मृत्यु है।
फ्राइड ने व्यक्तित्व के विकास में लैंगिक मूल प्रवृत्ति(Sexual) को एक महत्वपूर्ण निर्धारक माना है:-
1.मुखा अवस्था(Oral Stage):- यह है अवस्था जन्म से 1 वर्ष की उम्र तक चलती है जिसमें बालक मुख की क्रियाओं द्वारा लैंगिक सुख(Saxual satisfaction) प्राप्त करता है। स्तनपान करना ,अंगूठा चूसना तथा अन्य चीजों को मुख में डालना आदि।
2.गुदावस्था(Anal Stage):- यह अवस्था 3 वर्ष की आयु तक चलती है। इस अवस्था में बच्चा मल मूत्र को त्यागने तथा कभी-कभी रोकने में लैंगिक सुख की प्राप्ति करता है। मल त्याग करते समय वे काफी देर तक बैठे रहते हैं।
3.लिंग-स्पर्शी अवस्था(Phallic Stage):- यह अवस्था 3 वर्ष से 5 वर्ष की आयु तक रहती है इस अवस्था में बच्चे अपने हाथों से जनन इंद्रियों को स्पर्श करके लैंगिक सुख की प्राप्ति करते हैं।
4.अव्यक्त अवस्था(Latency Stage):- यह अवस्था 6 वर्ष से लेकर 12 वर्ष की आयु तक चलती है। इस अवस्था में बच्चे सामाजिक दबाव में आकर लैंगिक इच्छाओं को अनैतिक मानकर उनका दमन करते हैं।
5.जनेन्द्रिय अवस्था(Gential Stag:- यह अवस्था 13 वर्ष की आयु से प्रारंभ होती है इस अवस्था में किशोर पहले समलिंगियों तथा बाद में विषमलिंगी के साथ यौन संबंध बनाने में आनंद की अनुभूति प्राप्त करता है।