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Saturday, February 12, 2022

Defence Mechanism(रक्षा युक्तियाँ):-

 फ़्रायड ने रक्षा युक्ति शब्द उन युक्तियों के लिए किया है जिन्हें व्यक्ति बाह्य खतरों की आशंकाओं तथा आन्तरिक प्रेरकों से होने वाली चिंताओं से बचने के लिए अचेतन प्रक्रिया के माध्यम से वास्तविकता को झुठलाते हुए अपनाता है।

-ये रक्षा युक्तियाँ खतरे को नही बदल पाती है लेकिन ये खतरे के प्रति व्यक्ति की सोच को बदल देती हैं।

-मॉर्गन तथा किंग के अनुसार-"रक्षा युक्तियाँ सामान्यतया वे मान्य तरीके हैं जिनके द्वारा व्यक्ति तनाव से मुक्ति पाता है।"

Defence Mechanism are the generally accepted ways of looking at how people handle stress._Morgan&King

-रक्षा युक्तियाँ दो प्रकार की होती है:-

(1)मुख्य युक्तियाँ(Major Mechanism)-ये मनोरचनाएँ व्यक्ति के तनाव या संघर्ष को पूर्ण या आंशिक रूप में स्वयं समाप्त करने में सक्षम होते है।इनमें मुख्य रूप से दमन,शमन,प्रतिक्रिया-निर्माण, प्रत्यागमन,युक्तिकरण, उदात्तीकरण ,रूपांतरण एवं विवेकीकरण करण आते हैं

-गौण युक्तियाँ(Minor Mechanism):-ये युक्तियाँ व्यक्ति के तनाव तथा संघर्ष को दूर करने में स्वयं तो सक्षम नही होती हैं लेकिन तनाव दूर करने में मुख्य युक्तियों की सहायता करती है। इस श्रेणी में प्रक्षेपण ,विस्थापन, प्रत्याहार, क्षतिपूर्ति, वास्तविकता से पलायन ,स्थानांतरण आदि प्रमुख है

प्रमुख रक्षा युक्तियाँ:-

(1)दमन(Repression)- जब कोई विचार चेतन में उत्पन्न होता है तो या तो उसे व्यक्त कर दिया जाता है या उसका दमन कर दिया जाता है। दमन संघर्षों से छुटकारा पाने के लिए किया जाता है ।दमन में पीड़ा से बचने की भावना निहित होती है तथा दमन हम उन्हीं विचारों या इच्छाओं का करते हैं जिन्हें हम व्यक्त नहीं कर पाते।

उदाहरण -एक युवक ऐसी लड़की की और आसक्त हो जाता है जो रिश्ते में उसकी बहन लगती है। अतः सामाजिक दृष्टि से उसके साथ यौन संबंध बनाना नैतिकता के अनुकूल नहीं है, जिस कारण चेतन इस विचार को स्वीकार नहीं करता है ।अतः संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। इस संघर्ष को अचेतन में दबाकर व्यक्ति चिंता दूर करता है।

(2)शमन(Suppression)- दमन तथा सम्मान में अंतर यह है कि दमन की स्थिति में कष्टदायक विचार स्वयं ही अचेतन में चले जाते हैं जबकि समन की स्थिति में कष्टप्रद विचार या इच्छा को जानबूझकर अचेतन में प्रविष्ट कराया जाता है।

उदाहरण- जब कोई स्त्री विधवा हो जाती है तो वह अपने पति की मृत्यु की याद को अपनी चेतना से दूर करने का प्रयास करती है।

(3)प्रतिगमन(Regression)- वापस जाना। जब व्यक्ति स्वयं को चारों ओर से घिरा पाता है तो वह अपने उस शैशवकाल की ओर लौट आता है जहां यह सब चिंताएं नहीं थी। प्रतिगमन की स्थिति में एक परिपक्व व्यक्ति आप परिपक्व व्यवहार करने लगता है ।

उदाहरण-प्रौढ़ युवती इसलिए आंसू बहाती है क्योंकि बचपन में आंसू बहा कर वह मम्मी से बहुत सी बातें बनवा लिया करती थी।

(4) आत्मीकरण(Identification)- दूसरे व्यक्ति के गुणों को अपने व्यक्तित्व में ग्रहण करने की कला को  आत्मीकरण कहते हैं।

उदाहरण -एक व्यक्ति देवानंद से आत्मीकरण कर उसी की तरह बाल रखना या बोलना प्रारंभ कर देता है।

(5)युक्तिकरण(Rationalization)- इस युक्ति के द्वारा व्यक्ति अपनी कमियों तथा असफलताओं को उचित करार देने के लिए तर्क प्रस्तुत करता है जैसे पैसा ना होने पर बच्चे को यह कहकर समझा दिया जाता है कि यह जलेबी ठीक नहीं है।

(6)क्षतिपूर्ति(Compensation)- हीनता की भावना से सुरक्षा पाने के लिए किसी दूसरे क्षेत्र में श्रेष्ठता का विकास करने की प्रक्रिया क्षतिपूर्ति कहलाती है।

उदाहरण -पढ़ाई में कमजोर छात्र खेल में अच्छा प्रदर्शन करके पढ़ाई की हीनता की क्षतिपूर्ति करता है।

(7)प्रक्षेपण(Projection)- अपने दोषों ,कमियों को दूसरों के सर पर थोप देना प्रक्षेपण कहलाता है।

उदाहरण -परीक्षा में असफल होने पर छात्र पेपर का आउट ऑफ कोर्स होना बताता है।

(8) उन्न्यन(Sublimation)- इस युक्ति के द्वारा व्यक्ति अपनी असामाजिक इच्छाओं के मार्ग को बदलकर सामाजिक मार्ग पर ले आता है, जैसे -प्रेमिका को प्राप्त करने में असफल एक व्यक्ति अच्छा मूर्तिकार बन जाता है।

(9)प्रतिक्रिया निर्माण(Reaction Formation)- जब कोई  इच्छा दमित हो जाती है तो अहं उसे दोबारा आने से रोकता है तथा व्यक्ति ऐसी स्थिति में विपरीत व्यवहार करता है जैसे धनी नहीं बनने पर गरीबों की प्रशंसा करना।

(10) रूपांतरीकरण (Conversation)- दैनिक समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए बीमार पड़ जाना चाहता है और फिर वह व्यक्ति वास्तव में बीमार पड़ जाता है।

(11)दिवा-स्वप्न(Day-Dreaming)- यह एक प्रकार से काल्पनिक दुनिया में हमारी इच्छाओं की पूर्ति कर आता है जिसे हम ख्याली पुलाव या हवाई किले बनाना कहते हैं।

(12)पलायन(Withdrawal)- व्यक्ति जब किसी भयानक परिस्थिति का सामना करने में स्वयं को अक्षम मानता है तो वह उससे पलायन करना ही उचित समझता है।

(13)अस्वीकृत(Denial)- कुछ व्यक्ति दुखद बातों को सुनकर ऐसा व्यवहार करते हैं मानो उन्होंने उन बातों को सुना ही ना हो।


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